BA Semester-1 Hindi Kavya - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

अध्याय - 26 
सुमित्रानन्दन पन्त

(व्याख्या भाग)

मौन निमंत्रण

(1)

स्तब्ध ज्योत्स्ना में जब संसार
चकित रहता शिशु सा नादान,
विश्व के पलकों पर सुकुमार
विचरते हैं जब स्वप्न अजान,
न जाने नक्षत्रों से कौन
निमन्त्रण देता मुझको मौन।

सन्दर्भ एवं प्रसंग - यह पद्यांश सुमित्रानन्दन पन्त की प्रसिद्ध एवं रहस्यमयी रचना "मौन निमन्त्रण" से लिया गया है। पन्त जी प्रकृति की हलचल को असीम एवं सर्वव्यापक ईश्वर का संकेत मानते हुए लिखते हैं।

व्याख्या - संसार के लोग जब शान्त चाँदनी में भोले-भाले बालक के समान आश्चर्यचकित हो जाते हैं। संसार की कोमल पलकों पर जब रात के समय लोगों के बिना जाने ही स्वप्न विचरण करने लगते हैं, उस समय न जाने कौन मुझे नक्षत्रों के द्वारा चुपचाप निमन्त्रण देता है अर्थात् अपने पास बुलाता है।
विशेष- (1) अलंकार - स्तब्ध संसार, शिशु सा, पलकों पर न नक्षत्रों मुझकों-मौन में अनुप्रास, चकित रहता शिशु सा नादान में उपमा न जाने नक्षत्रों से कौन में सन्देह तथा प्रश्न अलंकार है।
(2) स्वप्नों का मानवीकरण किया गया है।
(3) संस्कृत तत्सम प्रधान सरल सरस खड़ी बोली में रहस्यवादी भाव प्रकट किया गया है।

(2)

"सघन मेघों का भीमाकार
गरजता है जब तमसाकार,
दीर्घ भरता समीर निःश्वास
प्रखर झरती जब पावस धार
न जाने, तपक तड़ित में कौन
मुझे इंगित करता तब मौन !"

प्रसंग - पूर्ववत्।

व्याख्या - जब घने बादलों से घिरा हुआ आकाश भयानक गरजना करता है और आकाश में घिरी हुई घटाएँ गर्जन करती है। एवं सब कुछ अँधेरे में डूब जाता है। पवन इस प्रकार चलती हैं, मानों लम्बी-लम्बी गरम साँसे ले रही हो। उस समय जब वर्षा की तेज धार आकाश से धरती पर गिरती है, तब न जाने बिजली के रूप में तड़पकर कौन मुझे चुपचाप अपनी ओर बुलाता है। तात्पर्य यह है कि बिजली की चमक उसी निराकार एवं सर्वव्यापी ईश्वर का निमन्त्रण है।

विशेष - (1) बादलों का भयानक गर्जन, चारों ओर फैला हुआ अंधकार एवं उसमें तड़पती हुई बिजली - ये सभी भयानक वातावरण की सृष्टि करते हैं।
(2) सरल, सरस एवं संस्कृत तत्सम प्रधान रही खड़ी बोली में प्रेम की रहस्यमयी भावना व्यक्त  की गयी है।

(3)

देख वसुधा का यौवन भार
गूँज उठता है जब मधुमास,
विधुर उर के-से मृदु उद्गार
कुसुम जब खुल पड़ते सोच्छ्वास
न जाने सौरभ के मिस कौन
संदेश मुझे भेजता मौन !

प्रसंग - पूर्ववत्।

व्याख्या - धरती के यौवन का उभार देखकर जब बसन्त ऋतु का महीना गूंजने लगता है। और लम्बी साँसे छोड़ते हुए फूल इस प्रकार खिल उठते हैं, जिस प्रकार किसी दुःखी व्यक्ति के हृदय से कोमल भावनायें निकलती हैं। उस समय पता नहीं, सुगन्धि के बहाने कौन चुपचाप मुझे बुलावा देता है। अर्थात् बसन्त ऋतु के फूलों की सुगन्धि उसी अनुरूप एवं सर्वव्यापी प्रभु का संकेत है।

विशेष - ( 1 ) वसुधा, मधुमास कुसुम एवं सौरभ का मानवीकरण किया गया है।
(2) सरल, सरस एवं संस्कृत तत्सम प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।

(4)

तुमुलतम में जब एकाकार
ऊँघता एक साथ संसार
भीरू झींगुर कुल की झंकार
कँपा देती तंद्रा के तार
न जाने खद्योतों से कौन
मुझे पत्र दिखलाता तब मौन।

प्रसंग - अवतरण क्रमांक एक के समान।

व्याख्या - कवि कहता है कि जब गहन अंधकार में जगत की सभी वस्तुएँ काले रंग में रंगी हुई एकाकार दिखाई देती हैं, उस समय जब सम्पूर्ण संसार गहरी निद्रा में सो रहा होता है, तब रात्रि के सन्नाटे में झींगुर की सीत्कार कानों को भेदने वाली प्रतीत होती है और झींगुर की वह सीत्कार हमारी तन्द्रा (निद्रा) को विचलित कर देती है, उस समय पता नहीं कौन रहस्यमयी सत्ता जुगनुओं के माध्यम से उस अंधकार में हमें मार्ग में प्रकाश का आभास कराती है?

विशेष - (1) उपरोक्त पंक्तियों में अंधकारमयी रात्रि का वर्णन है।
(2) अनुप्रास अलंकार की छटा दृष्टव्य है

(5)

कनक छाया में, जबकि सकाल
खोलती कलिका उर के द्वार,
सुरभि पीड़ित मधुपों के बाल
तड़प बन जाते हैं गुंजार;
न जाने ढुलक ओस में कौन
खींच लेता मेरे दृग मौन।

प्रसंग - पूर्ववत्।

व्याख्या - कवि कहता है कि प्रातः काल की सुनहरी आभा में जब कली अपने हृदय के द्वार को खोलती है अर्थात् खिलती है और चारों ओर सुगन्ध उड़ने लगती है और उस सुगन्ध से मदमस्त होकर भँवरे उस कली का रस पान करने के लिये तड़प उठते हैं और उनकी यह तड़प उनके गुंजन के रूप में परिवर्तित हो जाती है। भाव यह है कि प्रातःकाल खिली हुयी कलियों पर भँवरे मण्डराते हैं और गुंजार करते हैं। ऐसे सुहावने समय में न जाने कौन फूलों पर पड़ी ओस के रूप में चुपचाप मेरी आँखों को अपनी ओर खींच लेता है। कवि के कथन का तात्पर्य है कि कोई ऐसी दिव्य शक्ति है जो प्रातः काल के इस सुहावने समय में उसे ( कवि को) अपनी ओर आकृष्ट करती है।

विशेष - (1) यहाँ कलिका एवं ओस का मानवीकरण किया गया है।
(2) विपर्यय, अनुप्रास आदि अलंकार प्रयुक्त हुये हैं।
(3) यहाँ छायावादी रहस्य भावना की झलक दृष्टिगोचर होती है, जिसमें कौतूहल का समावेश है।

प्रथम रश्मि

1. प्रथम रश्मि का  ................. मण्डप ताना।

संदर्भ - प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ छायावाद के आधार स्तम्भ कवि सुमित्रानन्दन पन्त की अमर कृति 'वीणा' काव्य-संग्रह के गीत 'प्रथम रश्मि का आना रंगिणि' से अवतरित हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में प्रकृति के सुकुमार कवि पन्त ने कोयल की अनायास फूटी बोली का वर्णन किया है। वे कोयल से प्रश्न करते हैं कि तुमने प्रभात की प्रथम किरण का आगमन कैसे जान लिया?

व्याख्या - कविवर पन्त जी कहते हैं कि प्यारी कोकिला तुमने प्रातः काल की प्रथम किरण की पहचान किस प्रकार कर ली, तुम्हारे स्वर में जो मधुर संगीत गूँज रहा है हे बाल रूप कोमल पक्षी कोकिला ! इस मधुर रागिनी के गीत को तूने कहाँ से प्राप्त किया है? तू तो रात्रि के कारण अपने घोसले में स्वप्नमयी निद्रा में अपने पंखों को फैलाए सुख से सो रही थी, तुम्हारे इस घोसले के द्वार पर रात्रि में अनेक जुगुनू अपना प्रकाश फैला रहे थे तथा अर्धनिद्रा में ऊँधते हुए से प्रतीत हो रहे थे। अब प्रातः काल हो चुका है, भू-मण्डल में नाना प्रकार के सुन्दर सुन्दर गगन चारी पक्षी अपने सुन्दर कलरव से कलियों का मुखमण्डल चूम रहे हैं। अब प्रभात की बेला में आकाश में स्थित तारे कान्तिहीन हो रहे हैं। उन तारों रूपी दीपकों का तेल (स्नेह) समाप्त हो चुका है, क्योंकि अब रात्रि नहीं है उषा की किरण प्रस्फटित हो रही है। अब तक निश्चल रूप में खड़े वृक्ष और उनके पत्तों में कोई कम्पन नहीं हो रहा है। रस्मि के आगमन के पहले यही तारे सपनों की धरती में विचरण कर रहे थे तथा अंधकार का मण्डप इस अवनि पर आच्छादित था।

विशेष-  रस- श्रृंगार, छन्द - गीत, भाषा - खड़ी बोली, काव्यगुण - माधुर्य, शब्द शक्ति - लक्षणा, अलंकार - मानवीकरण, श्लेष।

2.  कूक उठी ............. स्वर्गिक माना?

संदर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग  - प्रस्तुत पंक्तियों में पन्त जी कोयल को सम्बोधित करते हुए प्रातः काल के सौन्दर्य का वर्णन कर रहे हैं।

व्याख्या - पन्त जी कोकिला को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि प्रथम किरण के आगमन के आभास मात्र से वृक्ष में निवास करने वाली कोकिला कूक करके प्रातः काल के आगमन पर स्वागत गीत गाने लगी। कोयल अब पंचम स्वर में बोलने लगी, हे कोकिला क्या तू अन्तर्यामिनी है, जो प्रातः काल का पूर्वानुमान तुम्हें हो गया और तूने अपनी प्रथम कूक से सभी को प्रातः के आगमन की सूचना दे दी। प्रातः होते ही पुष्पों ने अपनी पंखुड़ियों रूपी पलकों को खोल दिया, पुष्प के पलक खोलते ही उनकी सुगन्ध वातावरण में निमीलित होने लगी। पुष्प गन्ध के रसपान के लिए मधुपों के छोटे-छोटे बच्चे उन पुष्पों के ऊपर मंडराने लगे। प्रातःकाल होते ही सम्पूर्ण जगत् में स्फूर्ति की लहर दौड़ गयी, समस्त जगत् जो सोया था उसमें स्पन्दन और कम्पन होने लगा, जगत् नवीन जीवन जीने के लिए प्रस्तुत हो गया। हे कोकिला !तूने प्रथम किरण को कैसे पहचान लिया ! तू तो अभी नादान विहग है, तूने अपने इन स्वरों में मधुर गीत कहाँ से प्राप्त किया है?

विशेष - रस - श्रृंगार, छन्द - गीत, भाषा - खड़ी बोली, काव्यगुण - माधुर्य, शब्द-शक्ति - अभिधा, अलंकार मानवीकरण।

यह धरती कितना देती है

(1)

मैंने छुटपन में छिपकर पैसे खोये थे,
सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे,
रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी,
और, फूल-फल कर मैं मोटा सेठ बनूँगा !
पर बंजर धरती में एक न अंकुर फूटा,
बन्ध्या मिट्टी ने न एक भी पैसा उगला!
सपने जाने कहाँ मिटे सब धूल हो गये!
मैं हताश हो, बाट जोहता रहा दिनों तक,
नाल - कल्पना के अपलक पाँवड़े बिछाकर !
मैं अबोध था, मैंने गलत बीज बोये थे,
ममता को रोपा था, तृष्णा को सींचा था !

सन्दर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत की कविता 'यह धरती कितना देती है' से ली गई हैं।

प्रसंग - इन पंक्तियों में कवि ने बालोचित स्वभाव पर प्रकाश डाला है। किस प्रकार बच्चा कल्पना करता है, उसको क्रियान्वित करता है, और तदन्तर असफल होने पर वह ऐसी कल्पनाओं से मुँह मोड़ लेता है।

व्याख्या - कवि अपने बाल जीवन को याद करते हुए कहता है, कि मैंने बचपन में लोगों की निगाहों से बचकर सिक्कों का वपन किया था और सोचा था कि ये सिक्के अंकुरित होंगे, इनसे प्यारे-प्यारे पेड़ उगेंगे, इन पेड़ों की शाखाओं में सिक्के फलेंगे और ये सुन्दर सिक्के हवा के झोंके के प्रभाव में आकर खनका करेंगे। रुपये की ये फसल मुझे एक मोटा सेठ बना देंगी, लेकिन कवि की कल्पना साकार नहीं हुई। एक भी सिक्का अंकुरित नहीं हुआ। बोये गए सिक्कों के बदले में धरती ने एक भी सिक्का नहीं दिया। परिणामतः सपनों पर तुषारापात हो गया। सारे सपने धूल-धूसरित हो गए। यद्यपि इसके बाद भी मैं निरन्तर इस बात की प्रतीक्षा करता रहा कि देर-सबेरे कभी-न-कभी ये रुपये अंकुरित होंगे। मेरी बाल कल्पना इस बात को मानने को तैयार ही नहीं थी कि सिक्कें अंकुरित नहीं होंगे मैंने एकटक अंकुरण की प्रतीक्षा की, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, वस्तुतः इस अनुकरण का कारण यह था कि मैंने अज्ञानतावश लोभ और मोह के वशीभूत होकर इन बीजों का वपन किया था।

विशेष- (i) कवि यहाँ लक्षणा के माध्यम से यह अभिव्यंजित करना चाहता है, कि लोभ और मोह के वशीभूत होकर किये कार्य फलीभूत नहीं होते।
(ii) बाल मनोविज्ञान का जीवंत चित्रण किया गया है। वस्तुतः बच्चों की कल्पनाएँ बहुत ही विलक्षण हुआ करती हैं।
(iii) मुहावरेदार, सरल एवं सर्वग्राह्य भाषा का सुष्ठु प्रयोग हुआ है।

(2)

मैं फिर भूल गया इस छोटी-सी घटना को,
और बात भी क्या थी, याद जिसे रखता मन!
किन्तु, एक दिन, जब मैं सन्ध्या को आँगन में
टहल रहा था, तब सहसा मैंने जो देखा,
उससे हर्ष - विमूढ़ हो उठा मैं विस्मय से !
देखा, आँगन के कोने में कई नवागत
छोटी-छोटी छाता ताने खड़े हुए हैं!
छाता कहूँ कि विजय पताकाएँ जीवन की,
या हथेलियाँ खोले थे वे नन्हीं, प्यारी,
जो भी हो, वे हरे-हरे उल्लास से भरे
पंख मारकर उड़ने को उत्सुक लगते थे,
डिम्ब तोड़कर निकले चिड़ियों के बच्चों-से!
निर्निमेष, क्षण भर मैं उनको रहा देखता,
सहसा मुझे स्मरण हो आया, कुछ दिन पहले,
बीज सेम के रोपे थे मैंने आँगन में.
और उन्हीं से बौने पौधों की यह पलटन
मेरी आँखों के सम्मुख अब खड़ी गर्व से,
नन्हें नाटे पैर पटक, बढ़ती जाती है !

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने पावस ऋतु के बाद आँगन के कोने में बोये गये सेम के बीजों के अंकुरण तथा उनके विकास का आलंकारिक वर्णन किया है।

व्याख्या - मैं इस बात को भूल गया था, कि मैंने कभी कुछ बोया था। इसका कारण था, कि यह एक सामान्य सी घटना थी और इसे याद रखने का कोई औचित्य नहीं बनता था। लेकिन एक दिन जब मैं सायंकाल आँगन में टहल रहा था, तब अचानक मेरी दृष्टि सेम के इन अंकुरों पर पड़ी। मैं इतना आश्चर्यचकित हुआ कि मेरे अंतःकरण में प्रसन्नता और विमूढ़ता के मिश्रित भाव संचारित होने लगे। मैंने देखा कि आँगन के कोने में कई नवागंतुक पधार चुके हैं। ये अपने सिर पर शरीर के अनुपात में ही छतरियाँ ताने हुए हैं। कवि इनको देखकर भाँति-भाँति की कल्पनाएँ करता है। कभी वह इन छतरियों को नवागंतुक पौधों की विजय पताकाएँ कहता है, तो कभी उनकी तुलना नन्हीं-नन्हीं प्यारी-प्यारी हथेलियाँ खोले छोटे-छोटे बच्चों से करता है। कवि पुनः कहता है, कि जो भी हो ये नन्हें पौधे हैं अतिशय सुन्दर। कभी-कभी ये हरे-भरे पौधे अत्यंत उल्लामित दृष्टिगत होते हैं। लगता है, ये अण्डे के खोल से बाहर आये चिड़ियों के बच्चे हों और पंख फैलाकर उड़ने के लिए उत्सुक हों।

कवि इस नयनाभिराम दृश्य को अपलक, क्षण भर देखता रहा. सहसा उसे स्मरण हो आया कि कुछ दिन पहले मैंने ही तो आँगन के कोने में पावस ऋतु के बाद सेम के बीजों का वपन किया था। आज वही बीज अंकुरित होकर इस दशा को प्राप्त हुए हैं। ये बौने पौधे किसी फौजी पलटन की तरह मेरे समक्ष खड़े हैं- गर्वोन्नत। इन फौजियों के पैर भी छोटे-छोटे हैं। इसको देखने के बाद लगता है, कि ये कदमताल करते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे हैं।

विशेष- (i) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि का प्रकृति प्रेम दृष्टव्य है। वह सेम के नवजात पौधों को विविध रूपों में देखता है। यह उसकी कल्पनाशीलता की पराकाष्ठा का द्योतक है।
(ii) सेम के पौधे को विभिन्न रूपों में मानवीकृत किया गया है। इसलिए यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
(iii) भाषा सरल एवं सुग्राह्य है।

(3)

तब से उनको रहा देखता, धीरे-धीरे
अनगिनती पत्तों से लद, भर गयीं झाड़ियाँ,
हरे-भरे टैंग गये कई मखमली चंदोवे!
बेलें फैल गयीं बल खा, आँगन में लहरों,
और सहारा लेकर बाड़े की टट्टी का
हरे-हरे सौ झरने फूट पड़े ऊपर को !
मैं अवाक् रह गया वंश कैसे बढ़ता है !
छोटे तारों से छितरे, फूलों के छींटे
झागों से लिपटे लहरी श्यामल लहरों पर
सुन्दर लगते थे, मावस के हँसमुख नभ-से,
चोटी के मोती से आँचल के बूटों से,

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - इन पंक्तियों में कवि सेम के विकासमान सौंदर्य का निरूपण विभिन्न उपमानों के सहारे कर रहा है।

व्याख्या - कवि सेम के पौधे का सतत निरीक्षण रखे हुए है। उसकी स्पष्टोक्ति है, जिससे पौधों का विकास धीरे-धीरे लेकिन सतत हो रहा है। ये पौधे लताओं और पत्तियों से भर गए हैं। इन्होंने झाड़ी का रूप धारण कर लिया है। लताएँ विकसित होकर चारों तरफ फैल गयीं। वे बलखाने और लहराने लगीं। चारों ओर हरे-भरे मखमली चॅदोवे जैसे टँग गए। ये लताएँ बाड़े की टट्टी के सहारे ऊपर को फैल गयीं। इनका यह स्वरूप कवि को बहुत सुखद लगता है। वह कल्पना करता है, कि नव लताएँ, जो ऊपर की ओर बढ़ी हुई हैं, वे ऊपर की ओर फूट पड़े झरने के रूप में प्रतीत हो रही हैं। कवि पुनः कहता है, कि इनकी वंश वृद्धि को देखकर मैं अवाक रह गया। मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा, वस्तुतः इन लताओं को देखकर ही मैंने वशं वृद्धि के विषय में जाना। कवि इन लताओं को विभिन्न रूपों में कल्पित करता है। कभी वह इन्हें झागों से लिपटे लहरयुक्त श्याम वर्णी लताओं पर छोटे-छोटे तारों के रूप में बिखरा हुआ कल्पित करता है, तो कभी पुष्पों की छींटों से जो भी हो ये लताएँ है बहुत ही सुन्दर हैं। ये कभी पावस ऋतु के प्रसन्नमुख आकाश जैसी लगती हैं, तो कभी किसी स्त्री की चोटी में लगे मोतियों जैसी और कभी सुहागिन स्त्री के आँचल के बूटों की तरह।

विशेष - (i) कवि ने सेम के पौधे के विकास की अवस्थाओं का सूक्ष्म निरीक्षण किया है।.
(ii) उपमा अलंकार का सुन्दर उदाहरण है।
(iii) मानवीकरण अलंकार भी द्रष्टव्य है।

(4)

यह धरती कितना देती है ! धरती माता
कितना देती है अपने प्यारे पुत्रों को!
नहीं समझ पाया था मैं उसके महत्व को !
बचपन में, छिः, स्वार्थ लोभवश पैसे बोकर !
रत्न- प्रसविनी है वसुधा, अब समझ सका हूँ!
इसमें सच्ची समता के दाने बोने हैं,
इसमें जन की क्षमता के दाने बोने हैं,
इसमें मानव-ममता के दाने बोने हैं,
जिससे उगल सके फिर धूल सुनहली फसलें
मानवता की - जीवन श्रम से हँसें दिशाएँ!
हम जैसा बोयेंगे वैसा ही पायेंगे!

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - कवि ने लोभ और मोह के वशीभूत होकर बचपन में रुपये बोये थे, जिनसे कुछ भी फल नहीं मिला। उसी कवि ने प्रौढ़ावस्था में कौतूहलवश सेम के कुछ दाने मिट्टी में दबा दिए। परिणामतः सेम के इन पौधों ने इतना फल दिया कि कवि को जानने पहचानने वाले तथा आस-पड़ोस के अपरिचितों ने भी सेम की फलियाँ खाकर तृप्ति का अनुभव किया। कवि ने व्याख्मेय पंक्तियों में उक्त दोनों स्थितियों का तुलनात्मक अध्ययन किया है।

व्याख्या - कवि कहता है, कि यदि निःस्वार्थ भाव से धरती का उपयोग किया जाए तो वह आवश्यकता की सभी वस्तुओं को सहर्ष उपलब्ध कराती है। वस्तुतः वह माँ है, और एक माँ अपने प्रिय पुत्रों से बिना कोई दुराव- छिपाव किए उन्हें सर्वस्व न्यौछावर कर देना चाहती है। पंत जी कहते हैं, कि मैं बचपन में माँ के इस महत्व को समझ नहीं पाया था, इसीलिए मैंने स्वार्थ एवं लोभ के वशीभूत होकर पैसे बोये थे। वस्तुतः धरित्री रत्नों को उत्पन्न करने वाली है इसका परिज्ञान मुझे अब हुआ है। इसीलिए इसमें सच्ची समता, जन की क्षमता एवं मानव-ममता के दाने वपन करना है। ताकि शक्ति, प्रेम एवं शील से युक्त भावों का उत्पादन हो सके। इस धरती से स्वर्णिम फसलों का उत्पादन संभव हो सके। मनुष्य श्रम की महत्ता को जाने, पहचाने तथा श्रम करने को तत्पर हों, तभी चारों तरफ खुशहाली फैलेगी। हमें इस परिवेश में उच्च मानवीय भावों का संचार करना चाहिए। जन-मन को नव चेतना से युक्त करने का प्रयास करना चाहिए। यदि हम ऐसा कर सकें तो मानवता का सच्चा विकास संभव हो सकेगा। अंत में कवि स्पष्ट करता है, कि हम जैसा बोऐंगें, वैसी ही फसल तैयार होगी। अर्थात् यदि हम समाज में स्वार्थ, अहंकार, लोभ, मोह आदि को प्रसारित होने देंगे तो हमें इनसे दो-चार होना पड़ेगा और यदि हमने समाज में दया, माया, ममता, बंधुत्व, भ्रातृत्व तथा अन्य उदान्त मानवीय भावों का संचार किया तो हमें निश्चित रूप से एक स्वस्थ परिवेश मिलेगा, जिसमें हम खुलकर साँस ले सकेंगे।

विशेष- (i) समता एवं मानव ममता जैसे भावों का संचार तथा उनके प्रसार की बात की गई है।
(ii) आलंकारिक एवं मुहावरेदार शैली का प्रयोग किया गया है।
(iii) सरल एवं सर्वग्राह्य भाषा है।


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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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